एक दिन मै जा रहा था सड़क पर ।
मुझको मिली एक दादी ।
मैंने कहा नाम क्या है तेरा ओ दादी।
वो बोली की मेरा नाम आजादी।
मैंने कहा की दादी अब तो तुम बुड्ढी हो गयी हो।
६३ साल की पूरी हो गयी हो।
आपसे है एक विनती जरुर ।
मत जाना हमसे दूर ।
दादी बोली मै तो आई थी ख़ुशी से।
मुझे क्या पता था मेरा स्वागत होगा दुखी से।
आतंकवाद गुलाम बना रहा है ।
अहमदाबाद मुंबई मै विस्फोट करा रहा है।
लालू जी खा रहे है चारा ।
आम जनता तो है बेचारा ।
संसद मै दिखाए जा रहे है नोट।
यह सब हो रहा है पाने के लिए विश्वास वोट ।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो मै नजर ना आउंगी।
एक दिन तुम सब को छोड़ कर चले जाउंगी।
फिर मत रोना मत चिल्लाना की।
कहा गयी दादी कहा गयी आजादी।
- अमन अग्रवाल "मारवाड़ी"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें